छंद किसे कहते है ? उदाहरण और Chhand Ke Prakar

छंद किसे कहते है ? उदाहरण और Chhand Ke Prakar

अब देखते है कि छंद किसे कहते हैं ? छंद कितने प्रकार के होते हैं ? छंद के उदाहरण कौन-कौन से हैं ? छंद के बारे में संपूर्ण अध्ययन करने जा रहे हैं । छंद की परिभाषा :- " निश्चित चरण, वर्ण, मात्रा, गति, यति, तुक और गण आदि से संबंध नियोजित पद्य रचना छंद कहलाती है । " छंद कविता की संरचना में एक महत्वपूर्ण तत्व होता है, जो निश्चित मात्रा, वर्ण, गति, और यति का संयोजन होता है। इसे एक नियमित पैटर्न में व्यवस्थित किया जाता है, जिससे कविता में लय और सौंदर्य की एक निश्चित धारा बनती है। छंद के छ: अंगों में चरण, वर्ण, मात्रा, गति, यति, और तुक शामिल होते हैं, जो मिलकर कविता को एक विशेष ढंग और ताल देते हैं। छंद के विभिन्न प्रकार, जैसे वीर छंद, सवैया छंद, और त्रिपदी छंद, विभिन्न मात्राओं और तुकबंदी के आधार पर होते हैं। उदाहरण के लिए, दोहा एक लोकप्रिय छंद है जिसमें दो पंक्तियाँ होती हैं और प्रत्येक पंक्ति में 24 मात्राएँ होती हैं। इस प्रकार, छंद कविता की विशेषता और संरचना को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

आइए अब हम बात करते है Chhand Ke Ang के बारे में तो देखते है छंद के अंग, छंद के छः से ही पता चलता है की छंद के 6 अंग होते है और यदि प्रकार की बात करें तो छंद के 4 प्रकार होते है और ये 6 अंग तथा 4 प्रकार से अलग अलग छंद का निर्माण होता है । आइए सबसे पहले हम छंद के छः अंगो को देखते है तो Chhand Ke 6 Ang अर्थात् छंद के छ: अंग होते है :- 1) चरण या पाद Charan ya Pad ये भी दो प्रकार के होते हैं - (A) सम-चरण, (B) विषम - चरण तथा 2) वर्ण और मात्रा Varn Aur Matra ये भी दो प्रकार के होते है - (A) लघु या ह्रस्व , (B) गुरु या दीर्घ , 3) यति Yati , 4) गति Gati , 5) तुक Tuk ये भी दो प्रकार के होते हैं - A) तुकांत , B) अतुकान्त और 6) गण Gan होता हैं । इस तरह से ये छंद के छः अंग है और इनके अलावा छंद के 4 प्रकार भी होते हैं ।

Chhand ke bare me 

Chhand Ke Ang

आइए अब हम बात करते है Chhand Ke Ang के बारे में तो छंद के 6 अंग होते है और 4 प्रकार भी होते है , अब हम 6 अंग को देखेंगे, 1) चरण या पाद की परिभाषा :- एक छंद में अधिकतर 4 चरण होते है । प्रत्येक चरण में वर्ण ( अ से ज्ञ ) और मात्रा ( स्वर ) की संख्या निश्चित होती है । चरण (Charan) को ही पाद/पद (Pad) कहा जाता है । चरण दो प्रकार के होते हैं :- A) समचरण (Samcharan) :- दूसरे (2nd) और चौथे (4th) चरण को समचरण कहा जाता है । B) विषम चरण ( Visham Charan ) :- पहले (1st और 3rd) चरण को विषम चरण कहा जाता है । 2) वर्ण और मात्रा :- छंद में वर्ण और मात्रा (Varn Aur Matra) का महत्वपूर्ण योगदान होता है । वर्ण - क, ख, ग... से... क्ष, त्र, ज्ञ तक ( सभी व्यंजन अक्षर ) मात्रा - अ, आ, इ, ई से अं, अ: तक ( सभी स्वर मात्रा ) A) लघु ( ह्रस्व ) :- अ, इ, उ, ऋ, चन्द्र बिंदु( ँ) । जैसे :- व, वि, वु, वृ, वँ इस तरह के शब्द लघु होते है . लघु को | अर्थात खड़ी लकीर ( | ) से दर्शाते है । इन्हें l = 1 की गणना/गिनती की जाती है । B) गुरु ( दीर्घ ) :- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अनुस्वार (अं) तथा विसर्ग (:) । जैसे :- सा, सी, सू, से, सै, सो, सौ, सं, स: इस तरह के शब्द गुरु होते है । गुरु को (s) चिन्ह से दर्शाते हैं । इन्हें S = 2 की गणना/गिनती की जाती है । 3) यति की परिभाषा - छंद को पढ़ते समय किसी - किसी जगह पर रुकना होता है, जिन जगहों पर विराम चिन्ह लगे होते है । अत : विराम चिन्हों को यति (Yati) कहा जाता है । जैसे कि :- ( , ) ( | ) ( | | ) ( ? ) ( ! ) ( ; ) आदि । 4) गति की परिभाषा :- किसी छंद को पढ़ते समय एक लय या धारा - प्रवाह का उपयोग किया जाता है । गाना गाते समय जिस सुर - ताल का लयबद्ध प्रयोग किया जाता है उन्हें गति (Gati) कहते हैं । 5) तुक की परिभाषा :- छंद के अंत शब्दों को एक जैसा बनाने का प्रयास किया जाता है । तुक (Tuk) दो प्रकार के होते है :- A) तुकान्त (Tukant) - सच्चा, बच्चा, बच्चा, लुच्चा, कच्चा आदि । (इनका अंतिम उच्चारण मिल रहे है ।) B) अतुकान्त (Atukant) - जेल, घर, अच्छा, वाह आदि । (इनका अंतिम उच्चारण नहीं मिल रहे हैं ।) 6) गण की परिभाषा :- गण के आधार पर ही वर्णिक छंदों को बनाया जाता है । ये 8 प्रकार के होते है :- 1) यगण = यमाता = ISS , 2) मगण = मातारा = SSS , 3) तगण = ताराज = SSI , 4) रगण = राजभा = SIS , 5) जगण = जभान = ISI , 6) भगण = भानस = SII , 7) नगण = नसल = III , 8) सगण = सलगा = IIS ये आठ गण हो गए और अंत के दो अक्षर है . (Extra) ल से लघु = l , (Extra) ग से गुरु = S तथा इन्हें इस सूत्र के माध्यम से बनाया जाता है :- " यमाताराजभानसलगा " यह सूत्री और इसके प्रत्येक अक्षरों से एक - एक गण का निर्माण होता हैं । इस पैराग्राफ में हमने छंद के 6 अंगो के बारे में पढ़ लिया है और अब हम अगले पैराग्राफ में छंद के 4 प्रकार के बारे में पढ़ेंगे ।

Chhand Ke Prakar

छंद के प्रकार - अब हम बात करते है Chhand Ke Prakar के बारे में तो छंद 4 प्रकार के होते है और छंद के अंग 6 प्रकार के होते है , जिसे हमने पढ़ लिया है । अब देखते है , छंद के प्रकार - अब हम छंद के प्रकारों के बारे में बात करते हैं, सामान्य तौर पर छंद 4 प्रकार के होते हैं, जो निम्नलिखित हैं :- 1) मात्रिक - छंद (Matrik Chhand) , 2) वर्णिक - छंद (Varnik Chhand) , 3) वर्णिक - वृत्त छंद (Varnik Vritt Chhand) , 4) मुक्त - छंद ( Mukt Chhand ) आइए अब हम इन्हें क्रमश: देखते है । 1) मात्रिक छंद :- आइए बात करते है कि Matrik Chhand Kise Kahate Hai तो मात्रिक छंद की परिभाषा - जिन छंदों कि गणना मात्रा (स्वर) के आधार पर की जाए , उन्हें मात्रिक छंद (Matrik Chhand) कहते है । लघु ( l ) को 1 और गुरु ( S ) को 2 मानते हुए मात्राओं की गणना की जाती है । आइए अब हम Matrik Chhand Ke Prakar देखते है तो मात्रिक छंद 3 प्रकार के होते है :- A) सम मात्रिक छंद , B) अर्द्ध सम मात्रिक छंद , C) विषम मात्रिक छंद ।

आइए अब हम मात्रिक छंद के तीनों प्रकार के बारे में जानते हैं । अत: अब हम इस मात्रिक छंद के तीनों प्रकार को देखते हैं । A) सम मात्रिक छंद :- इस छंद के चारो चरणों में मात्राओं की संख्या समान होती है । इन्हें Sam Matrik Chhand कहते हैं । आइए जानते है की सम मात्रिक छंद के अंतर्गत कौन - कौन से छंद आते हैं । उदाहरण :- 1) चौपाई छंद, Chaupai Chhand , 2) रोला छंद , Rola Chhand , 3) अहीर छंद, Ahir Chhand , 4) तोमर छंद, Tomar Chhand , 5) मानव छंद, Maanav Chhand , 6) त्रिभंगी छंद, Tribhangi Chhand , 7) सुमेरु छंद, Sumeru Chhand , 8) सार छंद, Sar Chhand , 9) रूपमाला छंद, Rupmala Chhand , 10) दिक्पाल छंद, Dikpal Chhand , 11) गीतिका छंद, Gitika Chhand , 12) हरि गीतिका छंद, Harigitika Chhand , 13) वीर/आल्ह छंद, Veer/Alha Chhand  , 14) ताटक छंद Tatank Chhand । B) अर्द्ध सम मात्रिक छंद - इस छंद के चारों चरण में से दो - दो चरण की मात्रा आपस में समान होते हैं । जैसे कि विषम (1st और 3rd) चरण की मात्रा आपस में समान होते है तथा सम (2nd और 4th) चरण की मात्रा समान होते है । इन्हें Arddh Sam Matrik छंद कहते है । उदाहरण :- 1) दोहा छंद, Doha Chhand , 2) सोरठा छंद, Sortha Chhand , 3) बरवै छंद, Barvai Chhand , 4) उल्लाला छंद, Ullala Chhand . C) विषम मात्रिक छंद - इस छंद में छ: चरण होते है, शुरुआत के 2 चरण आपस में समान होते है और अंत के 4 चरण फिर से आपस में समान होते है लेकिन सभी 6 चरण आपस में समान नहीं होते हैं । सामान्यतया इन छंदों का निर्माण दो छंदों के योग से होता हैं । इसलिए इन्हे Visham Matrik Chhand कहते हैं । उदाहरण :- 1) कुंडलियाँ छंद (Kundliya Chhand) ( इसका निर्माण दोहा छंद + रोला छंद के योग से होता हैं ।) | 2) छप्पय छंद (Chhappay Chhand) ( इसका निर्माण रोला + उल्लाला के योग से होता हैं ।)

2) वर्णिक छंद - आइए अब हम जानते है कि Varnik Chhand Kise Kahate Hai तो देखते है वर्णिक छंद की परिभाषा - " जिन छंदों कि गणना वर्ण ( अक्षर ) के आधार पर की जाती है, उन्हें वर्णिक छंद (Varnik Chhand) कहा जाता हैं । " वर्णिक छंद 2 प्रकार के होते है :- A) साधारण छंद - इसमें 26 या उससे कम वर्ण पाए जाते हैं । B) दंडक छंद - इसमें 26 से अधिक वर्ण पाए जाते हैं । वर्णिक छंद के अंतर्गत निम्नलिखित छंद आते हैं, जैसे कि :- 1) मन्दाक्रान्ता Mandakranta Chhand , 2) शिखरिणी Shikharinee Chhand , 3) द्रुत बिलम्बित Drut Vilambit Chhand , 4) शार्दूलविक्रीडित Shardul Kridit Chhand , 5) कवित्त छंद ( मनहरण छंद ) Kavitt Chhand , 6) इन्द्र वज्रा छंद Indra Vajra Chhand , 7) उपेन्द्र वज्रा छंद Upendra Vajra Chhand , 8) घनाक्षरी Ghanakshari Chhand , 9) रूपघनाक्षरी Rup Ghanakshari Chhand , 10) देवघनाक्षरी Dev Ghanakshari Chhand , 11) सवैया छंद के अन्तर्गत - सुन्दरी सवैया, मदिरा सवैया, दुर्मिल सवैया, सुमुखि सवैया, किरीट सवैया आदि ।

3) वर्णिक वृत्त छंद :- आइए अब हम बात करते है Varnik Chhand के बारे में तो " यह वर्ण और मात्रा पर निर्भर करता है, ये गण (यमाताराजभानसलगा) आधारित भी होते है । इन्हें Varnik Chhand या उभय छंद भी कहा जाता है । " उदाहरण :- मत्तगयंद सवैया (मालती सवैया) ।

4) मुक्त छंद - वे सभी छंद या कविताएं जिनमें छंद के नियमों का प्रतिबंध नहीं होता है अर्थात् आधुनिक गीत/कविता में इसी छंद का अधिकतर प्रयोग देखने को मिलता है । छंद शास्त्र के आधार पर इस छंद को उपयुक्त नहीं माना जाता है । उदाहरण :- सूर्यकांत त्रिपाठी ( निराला जी ) की कविता "भिक्षुक" हैं , जैसे कि - "वह आता... , दो टूक कलेजे को करता, पछताता...., पथ पर आता.... । इस छंद में आपको नियमानुसार वर्ण, मात्रा, यति, गति देखने को नहीं मिलेगा ।

छंद, हिंदी कविता की संरचना का महत्वपूर्ण अंग होता है, जो कविता को एक विशेष लय, ताल और स्वरूप प्रदान करता है। यह शब्दों की मात्राओं, ध्वनियों, और तुकबंदी के आधार पर कविता की रचना में एक नियमित और समरस ढांचा बनाता है। छंद की प्रक्रिया कविता को एक प्रकार की धुन और संतुलन प्रदान करती है, जिससे पाठक या श्रोता को कविता समझने और उसे महसूस करने में आसानी होती है। छंद में चरण, वर्ण, मात्रा, गति, यति, और तुक जैसे विभिन्न तत्व शामिल होते हैं।

चरण कविता की पंक्तियों को संदर्भित करता है, जिनमें से प्रत्येक में एक निश्चित मात्रा और ध्वनि होती है। वर्ण कविता में प्रयुक्त स्वर और व्यंजन होते हैं, जो कविता के लय और ताल को प्रभावित करते हैं। मात्रा, शब्दों की ध्वनि की लंबाई को मापती है, जो कविता की गति और ताल को निर्धारित करती है। गति में शब्दों की आवाज़ की तेज़ी और धीमापन शामिल होता है, जो कविता के भाव और प्रभाव को बढ़ाता है। यति, पंक्तियों में विराम चिह्नों का स्थान होता है, जो कविता की लय और अर्थ को स्पष्ट करता है। तुक, शब्दों के अंत की ध्वनि की समानता को दर्शाता है, जो छंद में तुकबंदी का निर्माण करती है।

छंद के विभिन्न प्रकार होते हैं, जैसे वीर छंद, सवैया छंद, त्रिपदी छंद, और मुक्तक छंद। वीर छंद, जिसमें 16 मात्राएँ होती हैं, को महाकाव्यों और महाकाव्यात्मक कविताओं में इस्तेमाल किया जाता है। सवैया छंद, जिसमें 22 मात्राएँ होती हैं, को भी बहुत से कवि अपनी रचनाओं में अपनाते हैं। त्रिपदी छंद, जिसमें 13 मात्राएँ होती हैं, अक्सर भावनात्मक और संतुलित कविताओं में उपयोगी होता है। मुक्तक छंद, जिनमें कोई निश्चित मात्रा नहीं होती, कविता को एक अधिक स्वतंत्र और व्यक्तिगत स्वरूप प्रदान करता है।
Chhand
छंद के उदाहरण कविता को एक विशिष्ट ढांचा और सुंदरता प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए, दोहा एक ऐसा छंद है जिसमें दो पंक्तियाँ होती हैं और प्रत्येक पंक्ति में 24 मात्राएँ होती हैं। यह छंद अपनी संक्षिप्तता और सुसंगतता के लिए प्रसिद्ध है। कबीर का प्रसिद्ध दोहा: "सिंहासन हिल रहा है, जनता का राज आ रहा है।" कविता में तुकबंदी और लय जोड़ने का काम करता है। गीत छंद में आमतौर पर 8-8 मात्राओं की पंक्तियाँ होती हैं, जो कविता में एक विशेष ताल और लय को जोड़ती हैं। त्रिपदी छंद में 13 मात्राएँ होती हैं और यह छंद भावनात्मक कविताओं में उपयोगी होता है।

Chhand Ke Udaharan

आइए अब हम Chhand Ke Udaharan को देखते हैं , 1) मात्रिक छंद के अंतर्गत :- मात्रिक छंद के अंतर्गत आने वाले दोहा छंद को देखते है जो अर्द्ध सम मात्रिक छंद होता है क्योंकि हम जानते है कि दोहा छंद (Doha Chhand) :- इसके पहले और तीसरे (विषम चरण) में 13-13 मात्राएं होती है और दूसरे तथा चौथे (सम चरण ) में 11-11 मात्राएं होती है । उदाहरण - कारज(SII) धीरे(SS) होत(SI) है(S) , काहे(SS) होत(SI) अधीर(ISI) । समय(III) पाय(SI) तरुवर(IIII) फरै(IS), केतक(SII) सींचो(SS) नीर(SI) ।। नोट- 1) S = गुरु चिन्ह, 2 गणना करे । 2) I = लघु चिन्ह, 1 गणना करे ।

2) वर्णिक छंद के अंतर्गत :- वर्णिक छंद के अन्तर्गत इन्द्र वज्रा छंद आता है अर्थात इंद्रवज्रा छंद, वर्णिक छंद के अंतर्गत आता है, जिस कारण वर्णों(अक्षरों) की गणना की जाएगी । इन्द्रवज्रा छंद (Indravajra Chhand) - इसके प्रत्येक चरण में 11-11 वर्ण (अक्षर) होते हैं अर्थात यदि चारों चरण की बात की जाए तो कुल 44 वर्ण होते हैं । प्रत्येक चरण का अंत लगातार दो गुरु (SS) से होता है । दो तगण(SSI) और एक जगण(ISI) के क्रम से यह छंद होता है । उदाहरण :- माता(2) यशोदा(3) हरि(2) को(1) जगावै(3) । प्यारे(2) उठो(2) मोहन(3) नैन(2) खोलो(2) ।। द्वारे(2) खड़े(2) गोप(2) बुला(2) रहे(2) हैं(1) । गोविन्द(3), दामोदर(4) माधवेति(4) ।।

3) वर्णिक वृत्त छंद :- वर्णिक वृत्त छंद के अन्तर्गत मत्तगयंद सवैया (मालती सवैया) छंद आता है तो आइए देखते है, मत्तगयंद सवैया (मालती सवैया) Mattgayand Savaiya (Malti Savaiya) - लगातार 7 बार भगण (SII) होता है । अंत में लगातार 2 बार गुरु (S) होता है । कुल 23 वर्ण(अक्षर) प्रत्येक चरण में होता है । उदाहरण :- धूरि(2- अक्षर) भरे(2) अति(2) शोभित(3) श्यामजू(3) , जैसी(2) बनी(2) सिर(2) सुंदर(3) चोटी 2(SS) ।।    खेलत(3 अक्षर) खात(2) फिरै(2) अँगना(3), पग(2) पैंजनि(3) बाजति(3) पीरी(2) कछौटी 3(SS) ।।

4) मुक्त छंद - आइए अब हम बात करते है मुक्त छंद के बारे में तो यदि छंद के नियमों का प्रयोग किए बिना, कोई रचना किया जाता है तो उसे मुक्त छंद कह जाता है । उदाहरण :- सूर्यकांत त्रिपाठी ( निराला जी ) की कविता "भिक्षुक" है , जैसे कि - " वह दो टूक कलेजे को करता, पछताता... पथ पर आता । "इस रचना में आपको वर्ण, मात्रा, यति, गति, टूक देखने को नहीं मिलेगा । इस प्रकार से जो रचना होते हैं उन्हें मुक्त छंद कहा जाता है ।

छंद के माध्यम से कविता को एक नियमित रूप और ताल मिलता है, जो उसे प्रभावशाली और यादगार बनाता है। छंद का अध्ययन कवियों को अपनी रचनाओं में एक व्यवस्थित और सुंदर ढांचा देने में मदद करता है। यह कविता को एक विशिष्ट लय और ध्वनि प्रदान करता है, जिससे कविता का प्रभाव और भी बढ़ जाता है। छंद की विविधता और उसकी विशेषताएँ कविता को एक अद्वितीय और आकर्षक रूप देती हैं, जो उसे पाठकों और श्रोताओं के दिल में एक विशेष स्थान बनाती हैं । इस प्रकार, छंद कविता की संरचना और सुंदरता का एक अनिवार्य हिस्सा है, जो कविता को एक विशिष्ट स्वरूप और लय प्रदान करता है। यह केवल कविता को एक ढांचा ही नहीं देता, बल्कि उसकी भावनात्मक गहराई और प्रभाव को भी बढ़ाता है । यदि आपने छंद के बारे में पढ़ लिया है तो आपको अब अलंकार (Alankar) के बारे में पढ़ना चाहिए ।छंद का सही उपयोग कवियों को उनकी रचनाओं में एक समृद्ध और प्रभावशाली ढांचा प्रदान करता है, जिससे उनकी कविता पाठकों और श्रोताओं के मन में एक स्थायी छाप छोड़ती है ।

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