Alankar Kise Kahate Hai
आइये अब हम बात करते है कि Alankar kise Kahate Hai तो अब हम देखते है अलंकर की परिभाषा - "अलंकार का शाब्दिक अर्थ होता है - आभूषण" , जिस प्रकार से मनुष्य अपनी सुंदरता बढ़ाने के लिए श्रृंगार करता है, उसी प्रकार से काव्य(रचनाओ) की सुंदरता बढ़ाने के लिए शब्द/अर्थ रूपी श्रृंगार किया जाता है ।
" काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्व को अलंकार कहते हैं । " जैसे स्त्री की सुंदरता के लिए आभूषण आवश्यक होता है, वैसे ही काव्य की शोभा के लिए अलंकार आवश्यक होती है, इसीलिए कहा गया है कि :- " अलंकरोति इति अलंकारः " अर्थात् जो अलंकृत करता है , वही अलंकार है . अलंकार का शाब्दिक अर्थ "आभूषण" होता है, और यह कविता की सुंदरता को बढ़ाने के लिए शब्दों और अर्थों का श्रृंगार करने का तरीका है। जैसे मनुष्य अपनी सुंदरता बढ़ाने के लिए श्रृंगार करता है, वैसे ही काव्य की सुंदरता बढ़ाने के लिए शब्दों और अर्थों का श्रृंगार किया जाता है। काव्य में शोभा बढ़ाने वाले तत्वों को अलंकार कहते हैं। यह कविता की उत्कृष्टता और भावनात्मक प्रभाव को बढ़ाता है, इसलिए इसे "अलंकारोति इति अलंकारः" यानी जो अलंकृत करता है, उसे ही अलंकार है, कहा जाता है ।
अब हम जानते है Alankar Ke Prakar के बारे में तो देखते है अलंकार के प्रकार - शब्द और अर्थ के आधार पर अलंकार को तीन भागों में बांटा किया है । अतः अलंकार 3 प्रकार के होते हैं, जो निम्नलिखित है :- 1) शब्दालंकार (Shabdaalankar) , 2) अर्थालंकार (Arthaalankar) , 3) उभयालंकार (Ubhayaalankar) , अलंकार के दो प्रमुख प्रकार होते हैं: शब्दालंकार और अर्थालंकार। शब्दालंकार उस स्थिति को संदर्भित करता है जहां कविता की सुंदरता शब्दों की विशेषता से उत्पन्न होती है। शब्दालंकार के अंतर्गत अनुप्रास, यमक, पुनरुक्ति, वीप्सा, वक्रोक्ति, और श्लेष जैसे विभिन्न प्रकार आते हैं। अनुप्रास अलंकार में एक ही वर्ण की आवृत्ति होती है, जैसे कि 'च' वर्ण का बार-बार उपयोग। यमक अलंकार में एक ही शब्द के विभिन्न अर्थों के साथ प्रयोग होता है। पुनरुक्ति में एक ही शब्द की बार-बार आवृत्ति होती है, जबकि वीप्सा अलंकार में किसी भाव को व्यक्त करने के लिए शब्दों की पुनरावृत्ति होती है। वक्रोक्ति अलंकार तब होता है जब शब्दों का अर्थ श्रोता द्वारा गलत समझा जाता है। श्लेष अलंकार में एक ही शब्द के कई अर्थ होते हैं, जो कविता में गहराई और प्रभाव बढ़ाते हैं।
अर्थालंकार, शब्द के बजाय अर्थ के सौंदर्य को संदर्भित करता है। इसमें उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, द्रष्टान्त, संदेह, अतिशयोक्ति, उपमेयोपमा, प्रतीप, अनन्वय, भ्रांतिमान, दीपक, अपहृति, व्यतिरेक, विभावना, विशेषोक्ति, अर्थान्तरन्यास, उल्लेख, विरोधाभाष, असंगति, मानवीकरण, अन्योक्ति, काव्यलिंग, और स्वभावोती जैसे विभिन्न प्रकार होते हैं। उपमा अलंकार में किसी वस्तु की तुलना किसी दूसरी वस्तु से की जाती है, जैसे कि हरि के चरणों को कमल की तुलना में रखा जाता है। रूपक अलंकार में उपमेय और उपमान की पहचान मिट जाती है, जैसे "चंद्र खिलौना" में चंद्र और खिलौने के बीच अंतर नहीं किया जा सकता। उत्प्रेक्षा अलंकार में उपमेय की कल्पना की जाती है, जैसे "मुख मानो चंद्रमा है" में चेहरे को चंद्रमा मान लिया जाता है। अतिशयोक्ति अलंकार में किसी बात को अत्यधिक बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया जाता है, जैसे "घोड़ा नदी पार कर गया" में घोड़े की क्षमता को अत्यधिक बढ़ा दिया गया है। संदेह अलंकार में उपमेय और उपमान के बीच संदेह उत्पन्न किया जाता है, जैसे द्रौपदी की साड़ी का मामला महाभारत में संदेह का कारण बनता है।
Alankar Ke Prakar Aur Udaharan
1) शब्दालंकार की परिभाषा - आइये अब जानते है की Shabdaalankar Kise Kahate Hai तो काव्य में जब शब्दों के कारण सौंदर्य उत्पन्न हो तो वहां पर शब्दालंकार की उत्पत्ति होती है । शब्दालंकार का संधि विच्छेद करने पर होगा शब्दालंकार = शब्द + अलंकार . शब्दालंकार निम्नलिखित 6 प्रकार के होते हैं :- i) अनुप्रास अलंकार Anupras Alankar , ii) यमक अलंकार Yamak Alankar , iii) पुनरुक्ति अलंकार Punrukti Alankar , iv) वीप्सा अलंकार Vipsa Alankar , v) वक्रोक्ति अलंकार Vakrokti Alankar , vi) श्लेष अलंकार Shlesh Alankar .
(i) अनुप्रास अलंकार की परिभाषा - अनुप्रास दो शब्दों से मिलकर बना है, जहां अनु का अर्थ लगातार होता है और प्रास का अर्थ अक्षर होता है अर्थात काव्य में जब कोई वर्ण (अक्षर) लगातार आता है तो वहां अनुप्रास अलंकार पाया जाता है । उदाहरण :- " चारुचंद्र की चंचल किरणें , खेल रहीं हैं जल - थल में । स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है, अवनि और अम्बरतल में । " इस वाक्य में देख सकते हैं कि ' च ' वर्ण की आवृत्ति कई बार हुई है, इस कारण यह अनुप्रास अलंकार है । अनुप्रास अलंकार के 5 प्रकार होते हैं :- अ) छेकानुप्रास अलंकार (Chhekanupras Alankar) , ब) वृत्यानुप्रास अलंकार (Crityanupras Alankar) , स) लाटानुप्रास अलंकार (Latanupras Alankar) , द) अंत्यानुप्रास अलंकार (Antyanupras Alankar) , इ) श्रुत्यानुप्रास अलंकार (Shrutyanupras Alankar) .
(ii) यमक अलंकार (Yamak Alankar) की परिभाषा :- काव्य में जब एक ही शब्द को कई बार लिखा जाता है तो वहां यमक अलंकार (Yamak Alankar) होता है । उदाहरण :- 1) काली घटा का घमंड घटा । यहां पर एक घटा का अर्थ है "बादल" से है तो दूसरे घटा का अर्थ "कम" होने से है । 2) कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय , या खाए बौराय जग, वा पा बौराय ।। यहां पर कनक शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है । जहां पर पहले कनक का अर्थ सोना (Gold) और दूसरे कनक का अर्थ धतूरा जहर से है । कहा जा रहा है कि सोना(कनक) मिले या धतूरा(कनक) दोनों में ही लोग पागल हो जाते हैं ।
(iii) पुनरुक्ति अलंकार की परिभाषा :- पुनरुक्ति = पुन: + उक्ति , जब काव्य में एक ही शब्द की आवृत्ति कई बार हो और उस शब्द का यथावत रहे तो वहां पर पुनरुक्ति अलंकार (Punrukti Alankar) होता है । उदाहरण :- 1) यहां के बच्चे छोटे-छोटे हैं । 2) मैं दूर - दूर तक घूम आया लेकिन कोई नहीं दिखा ।
(iv) वीप्सा अलंकार की परिभाषा :- जब काव्य में आदर्श, हर्ष, शोक, आश्चर्य को मजबूती के साथ बताने के लिए किसी शब्द को बार-बार दोहराया जाता है, तो वहां वीप्सा अलंकार पाया जाता है । ऐसे शब्द छि-छि, राम-राम, चुप-चुप, हा-हा,ओह-ओह आदि इस तरह के शब्द वीप्सा अलंकार के अन्तर्गत आते है । जहाँ पर मनोभावों (मन की भावना) की उत्पत्ति होती है वहां वीप्सा अलंकार पाया जाता है । उदाहरण :- 1) या मधुर-मधुर मेरे दीपक जल । ( महादेवी जी ) 2) राम - राम भैया जी ।
(v) वक्रोक्ति अलंकार की परिभाषा :- जब वक्ता के द्वारा कुछ शब्द बोला गया हो और श्रोता के द्वारा उस शब्द का गलत अनुमान लगा लिया हो तो वहां पर वक्रोक्ति अलंकार पाया जाता है । वक्रोक्ति अलंकार दो प्रकार के होते हैं:- 1) काकू वक्रोक्ति अलंकार , 2) श्लेष वक्रोक्ति अलंकार , उदाहरण :- वाक्य - रोको मत जाने दो ,यहाँ - वक्ता ने बोला - रोको मत, जाने दो और - श्रोता ने समझा - रोको, मत जाने दो ।
(vi) श्लेष अलंकार - काव्य में जब कोई शब्द एक बार आए लेकिन उसी शब्द का कई मतलब हो तो वहां श्लेष अलंकार होता है । श्लेष का अर्थ होता है चिपकना अर्थात काव्य के किसी एक शब्द में ही अन्य शब्द भी चिपके हुए होते हैं । उदाहरण :- "रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून | पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून ||" इस काव्य में पानी के तीन अर्थ हैं चमक, इज्जत और जल ।
2)अर्थालंकार की परिभाषा :- अब हम बात करते है कि Arthalankar Kise Kahate Hai तो काव्य में जब शब्द के बजाय अर्थ के कारण सौंदर्य की उत्पत्ति हो तो वहां पर अर्थालंकार पाया जाता है । अर्थालंकार का संधि विच्छेद करने से होगा अर्थालंकार = अर्थ + अलंकार । अर्थालंकार निम्नलिखित प्रकार के होते हैं - 1) उपमा अलंकार (Upama Alankar) , 2) रूपक अलंकार (Rupak Alankar) , 3) उत्प्रेक्षा अलंकार (Utpreksha Alankar) , 4) द्रष्टान्त अलंकार (Drishtant Alankar) , 5) संदेह अलंकार (Sandeh Alankar) , 6) अतिश्योक्ति अलंकार (Atishyokti Alankar) , 7) उपमेयोपमा अलंकार (Upmeyopma Alankar) , 8) प्रतीप अलंकार (Prateep Alankar) , 9) अनन्वय अलंकार (Ananvayan Alankar) , 10) भ्रांतिमान अलंकार (Bhrantiman Alankar) , 11) दीपक अलंकार (Deepak Alankar) , 12) अपहृति अलंकार (Aphtiti Alankar) , 13) व्यतिरेक अलंकार (Vyatirek Alankar) , 14) विभावना अलंकार (Vibhavna Alankar) , 15) विशेषोक्ति अलंकार (Visheshokti Alankar) , 16) अर्थान्तरन्यास अलंकार (Arthantarnyas Alankar) , 17) उल्लेख अलंकार (Ullekh Alankar) , 18) विरोधाभाष अलंकार (Virodhabhas Alankar) , 19) असंगति अलंकार (Asangati Alankar) , 20) मानवीकरण अलंकार (Manvikaran Alankar) , 21) अन्योक्ति अलंकार (Anyokti Alankar) , 22) काव्यलिंग अलंकार (Kavyling Alankar) , 23) स्वभावोती अलंकार (Swabhavoti Alankar)
(i) उपमा अलंकार की परिभाषा - जब किसी की तुलना की जाती है तो वहां पर उपमा अलंकार होता है । उपमा का अर्थ ही होता है तुलना करना । उपमा अलंकार के 4 अंग :- अ) उपमेय , ब) उपमान , स) वाचक शब्द , द) साधारण धर्म . उपमा अलंकार के अंग 4 होते है लेकिन इसके प्रकार 2 होते हैं . उपमा अलंकार 2 प्रकार के होते है :- 1) पुर्णोपमा अलंकार, 2) लुप्तोपमा अलंकार . उदाहरण :- 1) हरि पद कोमल कमल । यहां हरि (भगवान) के चरणों को कमल फूल के समान कोमल बताया है अर्थात भगवान के चरणों की तुलना कमल से की गई है । 2) पीपर पात सरिस मन डोला . कहने का तत्पर्य यह है कि पीपल(पीपर) के पत्ते(पात) ज समान(सरिस) हमारा मन हिलता(डोला) है
(ii) रूपक अलंकार की परिभाषा - काव्य में जहां पर उपमेय और उपमान में पता ना चले वहां रूपक अलंकार होता है । रूपक अलंकार 3 प्रकार के होते है :- अ) सम रूपक अलंकार ब) अधिक रूपक अलंकार स) न्यून रूपक अलंकार उदाहरण :- "मैया मैं तो चन्द्र - खिलौना लैहों ।" यहां पर चंद्र के समान खिलौना नहीं मांगा जा रहा है बल्कि सीधे ही चंद्र खिलौना मांग लिया है । जिस वजह से इसमें उपमेय और उपमान का पता नहीं चल रहा है अर्थात चंद्र जैसा खिलौना चाहिए या फिर खिलौना जैसा चंद्र, यह स्पष्ट नहीं है ।
खिलौना मांगने के बजाय यहां पर तो सीधा ही चंद्र को खिलौने के रूप में मांग लिया गया है ।
(iii) उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा :-
जब उपमेय में उपमान के होने की संभावना व्यक्त की जाए, वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है अर्थात जो वास्तव में उपस्थित नहीं हो, फिर भी उसे किसी माध्यम से प्रस्तुत मान लिया जाए तो वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है ।
मनु, जनु, जानहु, मनहु, मानो, निश्चय, ईव आदि इस प्रकार के शब्द उत्प्रेक्षा अलंकार में पाए जाते हैं ।
उत्प्रेक्षा अलंकार 3 प्रकार के होते हैं :- 1) वस्तु प्रेक्षा अलंकार , 2) हेतु प्रेक्षा अलंकार , 3) फलोत्प्रेक्षा अलंकार . उदाहरण :- 1) मुख मानो चंद्रमा है । यहां पर मुंह (चेहरा) को ही चंद्रमा मान लिया गया है । 2) नेत्र मानो कमल हैं ।
(iv) अतिशयोक्ति अलंकार की परिभाषा :- काव्य में जब किसी बात को अत्यंत बढ़ा चढ़ाकर वर्णन किया जाता है, वहां पर अतिशयोक्ति अलंकार की उत्पत्ति होती है । उदाहरण - "आगे नदियाँ पड़ी अपार, घोडा कैसे उतरे पार . राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार ." कहने का तात्पर्य यह है कि राणा प्रताप की सोच रहे थे कि उनका घोड़ा नदी कैसे पार करेगा लेकिन उनके सोचने के पहले ही घोड़ा नदी के पार पहुंच चुका था । इस प्रकार बात को बढ़ा - चढ़ा कर कहा गया है ।
(v) संदेह अलंकार की परिभाषा - काव्य में उपमेय और उपमान में संदेह उत्पन्न हो तो वहां संदेह अलंकार होता है । उदाहरण :- सारी बीच नारी है, कि नारी बीच सारी है . कि सारी है की नारी है, कि नारी है की सारी है . यह घटना उस समय की है जब महाभारत में द्रौपदी का वस्त्र हरण किया जा रहा था . तब वहां सभा में बैठे लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि सारी में महिला लिपटी है कि महिला ही पूरी सारी की बनी हुई है ।
Ubhayaalankar Kise Kahate Hai
3) उभयालंकार की परिभाषा :- ऐसा अलंकार जिसमें शब्द और अर्थ दोनों से काव्य की सौंदर्य बढ़े उसे उभयालंकार कहा जाता है । उभयालंकार के प्रकार :- 1) संसृष्टि , 2) संकर . उदाहरण :-
कजरारी अखियन में कजरारी ना लखाय । इस काव्य में शब्द और उसके अर्थ दोनों से ही सौंदर्य की उत्पत्ति हो रही हैं, अत: यह उभयालंकार होगा । उभयालंकार वह अलंकार होता है जिसमें शब्द और अर्थ दोनों से कविता की सुंदरता बढ़ाई जाती है। उदाहरण के रूप में "कजरारी अखियन में कजरारी ना लखाय" का काव्य है, जिसमें शब्द और अर्थ दोनों के माध्यम से सौंदर्य उत्पन्न होता है। इस प्रकार, अलंकार कविता की सुंदरता और प्रभाव को बढ़ाने के लिए शब्दों और अर्थों का विशेष प्रयोग है। यह कविता को आकर्षक, प्रभावशाली और भावनात्मक बनाता है, जिससे पाठक और श्रोता पर गहरा प्रभाव पड़ता है। अलंकार का सही उपयोग कवि को अपनी रचनाओं में अधिक कला और प्रभाव लाने में सक्षम बनाता है, और कविता को एक विशेष सौंदर्य और गहराई प्रदान करता है ।
Tags:
हिंदी व्याकरण