भारोपीय भाषा परिवार किसे कहते है | Bharopiy Bhasha Parivar

भारोपीय भाषा परिवार: प्राचीन भाषाई धरोहर की गाथा

प्रिय मित्रों, आज हम एक ऐसी यात्रा पर चलने जा रहे हैं जो हमें भाषा के उस विशाल वृक्ष तक ले जाएगी, जिसकी जड़ें प्राचीन काल में गहरी धंसी हैं और शाखाएँ आज भी विश्व के कोने-कोने में फैली हुई हैं। यह है Bharopiya bhasha pariwar की कहानी, जो संस्कृत, हिंदी, फारसी, ग्रीक, लैटिन, और अंग्रेजी जैसी महान भाषाओं को एक सूत्र में बाँधती है। इस लेख में हम इस परिवार की उत्पत्ति, विकास, और सांस्कृतिक महत्व को विस्तार से समझेंगे। मेरी कोशिश होगी कि आप इसे पढ़ते हुए न केवल ज्ञान प्राप्त करें, बल्कि इस भाषाई विरासत से जुड़ाव भी महसूस करें।

Bharopiy Bhasha

भारोपीय भाषा परिवार क्या है?

Bharopiya bhasha pariwar क्या है, यह जानने के लिए हमें इतिहास के पन्नों को थोड़ा पीछे पलटना होगा। यह एक ऐसा भाषाई समूह है, जो हजारों वर्ष पहले एक साझा मूल से जन्मा और आज भारत से लेकर यूरोप तक फैला हुआ है। इसमें ऐसी भाषाएँ शामिल हैं जो हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा हैं—हिंदी, जिसमें हम बातचीत करते हैं, अंग्रेजी, जो वैश्विक संचार का माध्यम बनी, और संस्कृत, जो हमारे प्राचीन ग्रंथों की आत्मा है। इसका नाम "भारोपीय" इसलिए पड़ा, क्योंकि यह भारत (Bharat) और यूरोप (Europe) के बीच एक सेतु का काम करता है। पुरातात्विक साक्ष्यों और शिलालेखों के आधार पर विद्वानों का मानना है कि Hindi bhasha ka itihas और अन्य भाषाओं की जड़ें 2900 ईसा पूर्व से 2400 ईसा पूर्व के बीच हैं, जब मानव सभ्यताएँ अपनी नींव रख रही थीं। अब सवाल उठता है—इसका उद्गम स्थल कहाँ था? आइए, अगले खंड में इस रहस्य को खोलें।

उत्पत्ति और विकास—एक ऐतिहासिक यात्रा

उत्पत्ति का समय और स्थान

Bharopiya bhasha pariwar की उत्पत्ति को लेकर भाषा विज्ञान और पुरातत्व के अध्ययन कई मत प्रस्तुत करते हैं। कुछ विद्वान मानते हैं कि इसका जन्म भारत की पवित्र भूमि में हुआ, जहाँ से आर्य सभ्यता का विस्तार हुआ। अन्य का कहना है कि मध्य एशिया, शायद काला सागर के आसपास का क्षेत्र, इसका मूल स्थान हो सकता है। तीसरे समूह के अनुसार, यूरोप के किसी हिस्से में इसकी शुरुआत हुई, जबकि चौथे मत के अनुसार, यह एशिया और यूरोप के मिलन-स्थल पर फली-फूली। यह विवाद अभी भी अनसुलझा है, लेकिन यह निश्चित है कि Sanskrit aur Hittite bhasha ने मानव सभ्यता को जोड़ने में बड़ी भूमिका निभाई। 2400 ईसा पूर्व के आसपास यह दो शाखाओं—एनाटोलियन और भारोपीय—में बँटा।

प्रमुख शाखाएँ और उनका विकास

वंश वृक्ष

  • भारोपीय भाषा परिवार
    • एनाटोलियन
      • हित्ती (अश्वविद्या)
      • लीडियन (प्राचीन)
      • लूवियन (प्राचीन)
    • भारोपीय
      • हिन्द-ईरानी
        • संस्कृत (वेद)
        • हिंदी
        • फारसी
      • जर्मनिक
        • अंग्रेजी (आधुनिक)
        • जर्मन
      • इटैलिक/लैटिन
        • फ्रेंच (रोमन)
        • स्पेनिश
      • स्लाविक
        • रूसी
        • पोलिश
      • केल्टिक
        • आयरिश
        • वेल्श

एनाटोलियन शाखा में हित्ती, लीडियन, लीसियन, लूवियन, पलेइक, और हीरोग्लिफिक हिट्टाइट जैसी भाषाएँ शामिल हैं। हित्ती में अश्वविद्या पर आधारित ग्रंथ मिले, जो उस युग की बुद्धिमत्ता को दर्शाते हैं। दूसरी ओर, भारोपीय शाखा ने दस उप-शाखाएँ विकसित कीं, जिनमें Hindi bhasha ka itihas से जुड़ी हिन्द-ईरानी शाखा विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

तथ्य:

उत्पत्ति: 2900-2400 ईसा पूर्व

मुख्य क्षेत्र: भारत, यूरोप, मध्य एशिया

पुरानी भाषा: हित्ती

आधुनिक भाषाएँ: हिंदी, अंग्रेजी, फ्रेंच

हित्ती भाषा का विशेष योगदान

हित्ती भाषा एनाटोलियन शाखा की सबसे महत्वपूर्ण देन है। इसके ग्रंथों में अश्व प्रशिक्षण और युद्ध कला का वर्णन मिलता है, जो उस समय की प्रगति को दिखाता है। अन्य एनाटोलियन भाषाएँ लंबे समय तक जीवित नहीं रहीं, लेकिन Sanskrit aur Hittite bhasha से जुड़ी इसकी जड़ें इसे भारोपीय परिवार का हिस्सा बनाती हैं।

भाषाई समानताएँ—एकता का प्रमाण

सज्ञा रूप में समानता

संस्कृत हित्ती अन्य भाषाएँ
उद् वेदर वाटर (अंग्रेजी)
हेमन्त केमन्ज -
नामन् लमन् नौमन (लैटिन)
पितृ - पिता (हिंदी), Father (अंग्रेजी)

Bharopiya bhasha pariwar की यह विशेषता है कि "पितृ" (संस्कृत) हिंदी में "पिता", अंग्रेजी में "Father", और लैटिन में "Pater" के रूप में विकसित हुआ। यह शब्दों की एकता का प्रमाण है।

क्रिया रूप में समानता

संस्कृत हित्ती अन्य भाषाएँ
यामि इइआमि -
यासि इइआसि -
नेयन्ति - -

Sanskrit aur Hittite bhasha में यह समानता दिखाती है कि इनकी जड़ें एक ही हैं।

देवी-देवताओं के नामों में समानता

संस्कृत हित्ती अन्य भाषाएँ
सूर्य शुरियशः -
इन्द्र ईन्दर -
वरुण उरूयन -

यह Hindi bhasha ka itihas और अन्य भाषाओं की सांस्कृतिक निकटता को दर्शाता है।

भौगोलिक विस्तार और प्रभाव

Bharopiya bhasha pariwar भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, ईरान, अफगानिस्तान से लेकर यूरोप के रूस, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, और इंग्लैंड तक फैला है। यह विश्व का सबसे बड़ा भाषाई क्षेत्र है। कुछ प्रमुख भाषाएँ हैं:

  • एशिया: हिंदी, संस्कृत, बांग्ला, मराठी, गुजराती, फारसी, पश्तो।
  • यूरोप: अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, स्पेनिश, रूसी।
  • उत्तरी यूरोप: स्वीडिश, नार्वेजियन।

Sanskrit aur Hittite bhasha ने साहित्य सृजन में अग्रणी भूमिका निभाई, और आज भी इन भाषाओं को बोलने वालों की संख्या सबसे अधिक है।

महत्व और निष्कर्ष

Bharopiya bhasha pariwar का महत्व भौगोलिक विस्तार और सांस्कृतिक प्रभाव से समझा जा सकता है। यह विश्व का सबसे बड़ा भाषा परिवार है, जिसमें साहित्य, विज्ञान, और दर्शन की अमूल्य निधियाँ संरक्षित हैं। Hindi bhasha ka itihas इस परिवार का अभिन्न अंग है, जो भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में गर्व से खड़ा है।

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प्रिय पाठकों, आशा है कि यह लेख आपको Bharopiya bhasha pariwar की गहराई को समझने में सहायक रहा। कृपया अपने विचारों से मुझे अवगत कराएँ और इस लेख को अपने मित्रों के साथ साझा करें। धन्यवाद।

आचार्य पुष्पेंद्र शर्मा

आचार्य पुष्पेंद्र शर्मा जी, जिन्हें 15 वर्षों के शिक्षण अनुभव प्राप्त हैं व UGC-NET/JRF/CSIR-NET उत्तीर्ण विशेषज्ञ हैं, जो हर लेख को गहन शोध और तथ्यात्मक विश्लेषण के साथ प्रस्तुत करते हैं ।

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