रस किसे कहते है ? उदाहरण और Ras Ke Prakar

रस किसे कहते है ? उदाहरण और Ras Ke Prakar

रस एक महत्वपूर्ण साहित्यिक और सांस्कृतिक अवधारणा है जो काव्य, नाटक, संगीत और अन्य कलात्मक रूपों में आनंद की अनुभूति को दर्शाता है। इसका शाब्दिक अर्थ "आनंद" है, और यह उस भावनात्मक अनुभव को संदर्भित करता है जो पाठक, दर्शक या श्रोता को किसी कलात्मक प्रस्तुति के माध्यम से प्राप्त होता है। आचार्य भरतमुनि ने अपने 'नाट्यशास्त्र' में रस की परिभाषा को विस्तार से बताया है। उनके अनुसार, रस की उत्पत्ति विभाव, अनुभाव, और व्यभिचारी के संयोग से होती है। विभाव उस कारण को संदर्भित करता है जो भाव को उत्पन्न करता है, अनुभाव उन क्रियाओं को दर्शाता है जो भाव को प्रकट करती हैं, और व्यभिचारी वह संवेग होते हैं जो स्थायी भाव को प्रभावित करते हैं।
रस की अनुभूति दर्शक या पाठक के भीतर भावनाओं की गहराई को उजागर करती है। जैसे, हास्य रस तब उत्पन्न होता है जब कोई व्यक्ति हंसी और आनंद का अनुभव करता है, जबकि रौद्र रस तब होता है जब गुस्सा या क्रोध की भावना उत्पन्न होती है। रस के चार प्रमुख अंग होते हैं: विभाव (भाव उत्पन्न करने वाले तत्व), अनुभाव (भावों की अभिव्यक्ति), स्थायी भाव (मुख्य भाव जो स्थायी रूप से रहता है), और संचारी भाव (आवधिक भाव जो स्थायी भाव को प्रभावित करते हैं)। रस के ग्यारह प्रकार होते हैं, जिनमें श्रृंगार रस, हास्य रस, करुण रस, वीर रस, रौद्र रस, भयानक रस, वीभत्स रस, अद्भुत रस, शान्त रस, वात्सल्य रस, और भक्ति रस शामिल हैं। ये सभी रस विभिन्न भावनात्मक अनुभवों को व्यक्त करने में सक्षम होते हैं, और कला के माध्यम से विभिन्न प्रकार की भावनाओं और आनंद की अनुभूति को दर्शाते हैं ।

Ras Ki Paribhasha

आइए अब हम बात करते है Ras Ki Paribhasha के बारे में तो देखते है रस की परिभाषा - "काव्य को पढ़ने, देखने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, वह रस कहलाता है ।" रस का शाब्दिक अर्थ है- "आनंद" । रस के बारे में आचार्य भरतमुनि जी ने अपने ‘नाट्यशास्त्र’ मैं लिखा है कि - "विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः" इसका तात्पर्य है कि विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है । दृश्य ( देखकर), श्रव्य(सुनकर) या फिर पढ़कर हमें जो आनंद की अनुभूति होती है उसे ही रस कहा जाता है । यदि सामान्य शब्दों में समझा जाए तो हमारे मन के अंदर जो फिलिंग्स (Feelings) होती है उसे ही रस कहते हैं । जैसे- 1) हमें हंसने की फीलिंग हो रही हो तो वहां पर हास्य रस. 2) हमारे मन में गुस्सा वाली फीलिंग आ रही हो तो वहां पर रौद्र रस होता है ।

Ras Ke Prakar

आइए अब हम Ras Ke Prakar के बारे में बात करते है । रस का 4 अंग एवं 11 प्रकार होता हैं अर्थात रस के अंग 4 प्रकार के और स्वयं रस 11 प्रकार के होते है । अब हम देखते है, रस के 4 अंग :- 1) विभाव , 2) अनुभाव , 3) स्थायी भाव , 4) संचारी भाव ये सभी रस के 4 अंग थे . अब हम देखते है रस के 11 प्रकार :- 1) श्रृंगार रस , 2) हास्य रस , 3) करुण रस , 4) वीर रस , 5) रौद्र रस , 6) भयानक रस , 7) वीभत्स रस , 8) अद्भुत रस ,  9) शान्त रस , 10) वात्सल्य रस , 11) भक्ति रस. अत: इस प्रकार से रस के 4 अंग और 11 प्रकार होते हैं ।

आइए अब हम रस के 4 अंग और रस के 11 प्रकारों को विस्तारपूर्वक देखते है तो सबसे पहले शुरुआत करेंगे, रस के 4 अंगो के बारे में :- 1) विभाव :-  आइए अब हम देखते है की Vibhav Kise Kahate Hai और विभाव की परिभाषा के बारे में जानते है । विभाव की परिभाषा- जब कोई व्यक्ति, वस्तु या परिस्थितियाँ स्थायी भावों को उद्दीपन(Excited) या जागृत करती हैं, उन्हें विभाव कहा जाता हैं । उदाहरण -  1) अंधेरी रात में डर लगना । विश्लेषण:- डर लगना सामान्य बात है जो भयानक रस के अन्तर्गत आता है लेकिन अंधेरी रात होने के कारण डर लगने की मात्रा और ज्यादा बढ़ जाती है । यहां डर स्थायी भाव है और अंधेरी रात उद्दीपन है । विभाव 02 प्रकार के होते हैं- A) आलंबन विभाव , B) उद्दीपन विभाव । आइए सबसे पहले अब हम विभाव के अंतर्गत आलंबन विभाव के बारे में जानते है । A) आलम्बन विभाव की परिभाषा - बात करते है कि Alamban Vibhav Kya Hai तो जिन वस्तुओं या विषयों पर आलम्बित होकर भाव उत्पन्न होते हैं, वहां आलम्बन विभाव पाया जाता हैं । जैसे- नायक-नायिका। आलम्बन विभाव के भी 02 भेद हैं- आइए अब हम बात करते है Alamban Vibhav Ke Prakar के बारे में तो :- (अ) आश्रय , (ब) विषय . अब हम आश्रय और विषय के बारे में जानकारी लेते हैं । (अ) आश्रय- आइए अब हम देखते है कि Ashray Kise Kahate Hai तो '' जिस व्यक्ति के मन में स्थायी भाव उत्पन्न हो, उसे आश्रय कहा जाता हैं। अर्थात जिसके हृदय में भाव उत्पन्न हो ।'' आश्रय के बाद हम विषय देखते है तो (ब) विषय :- अब हम जानते है कि Vishay Kise Kahate Hai तो '' जिस वस्तु या व्यक्ति के लिए आश्रय के मन में भाव उत्पन्न होते हैं, उसे विषय कहते हैं। अर्थात जिसे देखकर, पढ़कर या सुनकर भाव उत्पन्न हो । '' उदाहरण -1) आतंकवादी को देखकर फौजी गुस्सा हो गए ।विश्लेषण - आतंकवादी विषय है और फौजी आश्रय है क्योंकि फौजी के मन में स्थायी भाव (गुस्सा), आतंकवादी  (विषय) के लिए उत्पन्न हो रहा है । 2) जॉनी को देखकर मुझे हासी आ गई । विश्लेषण - जॉनी विषय है और मुझे आश्रय है क्योंकि मेरे मन में स्थायी भाव(हसी), जॉनी(विषय) को देखकर आ रही है । यहां तक तो था आलंबन विभाव और उसके प्रकार के बारे में जानकारी तो अब आगे हम उद्दीपन विभाव के बारे में जानने वाले हैं । B) उद्दीपन विभाव की परिभाषा - आइए अब हम देखते है की Uddipan Vibhav Kya Hai तो "जिन वस्तुओं या परिस्थितियों को देखकर स्थायी भाव उद्दीप्त होने लगते है, उसे उद्दीपन विभाव कहते हैं । अर्थात कभी-कभी किसी को देखकर, पढ़कर या सुनकर हमारे मन में भी ठीक वैसा ही भाव उत्पन्न हो या किसी परिस्थिति के कारण जब वे भाव और अधिक प्रगाढ़ हो जाएँ , तो उन परिस्थितियों को ही उद्दीपन विभाव कहते हैं।" जैसे:- 1) रोते हुए देखकर रोने लग जाना ।विश्लेषण:- जब हम जब किसी प्रिय को रोते हुए देखते है तब इमोस नल हो जाते है या खुद भी रोने लगते है अर्थात परिस्थिति ही ऐसी बन जाती है कि हम कितने भी कठोर व्यक्ति हो लेकिन स्थायी भाव बढ़ने के कारण रोने लगते है । 2) डरते हुए चोरी करने गया और पुलिस देख डर गया । विश्लेषण:- मान लो एक डरपोक चोरी करने के लिए जाता है लेकिन चोरी करने के लिए वह गलती से पुलिस के घर में ही घुस गया,  चोर पहले से ही डरा हुआ था लेकिन जब उसे पता चलता है कि यह पुलिस का घर है तब वह और अधिक डर जाता है अर्थात चोर के डर में वृद्धि हो गई । डर एक प्रकार से भयानक रस का स्थायी भाव है, और इस स्थायी भाव में उद्दीपन हो रहा है । उद्दीपन विभव भी 2 प्रकार के होते है अर्थात् उद्दीपन विभाव के 02 प्रकार माने जाते हैं, आइए अब हम Uddipan Vibhav Ke Prakar को देखते है :- अ) आलंबन-गत (विषयगत) उद्दीपन विभाव :- व्यक्ति या वस्तु के कारण भाव में वृद्धि हो तो वहां विषयगत उद्दीपन पाया जाता है, इसे आलंबनगत उद्दीपन भी कहते हैं . उदाहरण- दो सिर वाला इंसान(व्यक्ति), पानी में चलने वाली कार(वस्तु) । ब) बाह्य-गत (बर्हिगत) प्रकृति का वातावरण के कारण भाव में वृद्धि हो तो वहां बाह्यगत उद्दीपन होता है, इसे वातावरणगत उद्दीपन भी कहते हैं । कुछ ऐसे कारक हैं जो उद्दीपन को बढ़ा देते हैं - अंधेरी रात , एकांत , सरसराहट , हिंसक पशुओं या उल्लू आदि की आवाज़, अंधेरी गुफा भय को बढ़ाते हैं, अत: ये वातावरण गत उद्दीपन कहलाएँगे । उदाहरण :- गुफा में जाने में डर लगना(प्रकृति), जलप्रपात का अद्भुत दृश्य(प्रकृति), एकांत स्थान(वातावरण) ।

2) अनुभाव :- आइए अब हम अनुभाव के बारे में जानते है तो अनुभाव रस के 4 अंगो में से एक अंग होता हैं । Anubhav Ras Ka Ang होता है । आइए अब हम देखते है अनुभाव की परिभाषा- अनु उपसर्ग है, जिसका अर्थ होता है बाद में या पीछे अर्थात स्थायी भाव के बाद में जो भाव उत्पन्न होते हैं उन्हें अनुभाव कहा जाता है । जैसे 1) सांप देखकर डर से चिल्लाना । विश्लेषण - सांप को देखकर स्थायी भाव डर उत्पन्न हुआ, जिसके ठीक तुरंत बाद चिल्लाने का भाव हुआ । 2) चुटकुला सुनने के बाद हंसी से उछलने लगा । विश्लेषण:- यहां पर स्थायी भाव हंसी है, जिसके ठीक तुरंत बाद उछलने का भाव उत्पन्न हुआ है । वाणी और अंगों के अभिनय द्वारा जो अर्थ प्रकट होता है, उसे अनुभाव कहा जाता है । कुछ सात्विक अनुभाव सहज रूप से प्रस्तुत होते हैं, जिनकी संख्या आठ है - 1) स्तंभ, 2) स्वेद, 3) रोमांच, 4)स्वर भंग, 5) कंप, 6) विवर्णता, 7) अश्रु, 8) प्रलय . यह सभी ऐसे भाव है, जो सहज ही दिख जाते हैं . आइए अब हम बात करते है अनुभव के प्रकार के बारे में तो अनुभाव के 04 भेद या प्रकार होते हैं, आइए अब हम Anubhav Ke Prakar को क्रमश : देखते है :- अ) कायिक, ब) मानसिक, स) वाचिक, द) आहार्य . अत: इस डकार अनुभाव के 4 भेद या प्रकार होते है ।

3) स्थायी भाव :- आइए अब हम बात करते है कि Sthayi Bhav Kise Kahate Hai तो सबसे पहले हम देखते है स्थायी भाव की परिभाषा- सहृदय के ह्रदय में विद्यमान भाव को स्थायी भाव कहा जाता है । अर्थात हृदय में चिरकाल तक मूल रूप से विद्यमान रहने वाले भाव को स्थायी भाव कहा जाता है. सभी रस के लिए एक-एक स्थायी भाव होता है । जैसे:- 1) श्रृंगार रस का स्थायी भाव - रति / प्रेम , 2) हास्य रस का स्थायी भाव - हसी , 3) करुण रस का स्थायी भाव - करुणा/शोक , 4) वीर रस का स्थायी भाव - उत्साह , 5) रौद्र रस का स्थायी भाव - क्रोध , 6) भयानक रस का स्थायी भाव - भय , 7) वीभत्स रस का स्थायी भाव - घृणा / जुगुप्सा , 8) अद्भुत रस का स्थायी भाव - आश्चर्य , 9) शान्त रस का स्थायी भाव - निर्वेद , 10) वात्सल्य रस का स्थायी भाव - बाल्य स्नेह , 11) भक्ति रस का स्थायी भाव - अनुराग . अत: इस प्रकार के यहां रस के 11 प्रकारों के 11 स्थाई भाव दिए गए है ।

4) संचारी भाव :- आइए अब हम जानते है कि Sanchari Bhav Kya Hai और अब देखते है संचारी भाव की परिभाषा - आश्रय के चित्त में उत्पन्न होने वाले अस्थिर मनोविकारों को संचारी भाव कहते हैं। इन्हे व्याभिचारी भाव भी कहा जाता है । इनके द्वारा स्थायी भाव और भी तीव्र हो जाता है। संचारी भावों की कुल संख्या 33 है, जो निम्नलिखित है । अब हम जानते है कि Sanchari Bhav Ki Sankhya Kitni Hoti Hai तो संचारी भाव की कुल संख्या 33 है लेकिन यह पानी के बुलबुलों की तरह बनते और बिगड़ते रहते हैं . 1)हर्ष,  2)विषाद,  3)त्रास,   4)ग्लानि,  5)चिन्ता,  6) शंका,  7) असूया,  8) अमर्ष,  9) मोह,  10) गर्व,  11) उत्सुकता,  12) उग्रता,  13) चपलता,  14) दीनता,  15) जड़ता,  16) आवेग,  17) निर्वेद,  18) मति,  19) विबोध,  20) वितर्क,  21) श्रम,  22) आलस्य,  23) निद्रा,  24) स्वप्न,  25) स्मृति,  26) मद,  27) उन्माद,  28) अवहित्था,  29) अपस्मार,  30) व्याधि,  31) मरण,  32)लज्जा (व्रीड़ा),  33) धृति . अत: इस प्रकार से संचारी भाव 33 हैं ।

ऊपर हमने रस के 4 अंगो के बारे में विस्तारपूर्वक जान लिया है और अब हम जानेंगे कि रस के 11 प्रकार होते हैं, जो निम्नलिखित हैं:- 1) श्रृंगार रस :- रस के 11 प्रकारों में पहला प्रकार होता है श्रृंगार रस, आइए अब हम श्रृंगार रस के बारे में बात करते है । श्रृंगार रस की परिभाषा - जहां पर नायक और नायिका के सौंदर्य तथा प्रेम का वर्णन हो वहां श्रृंगार रस होता है । इसे रसराज या रसपति भी कहा जाता है . श्रृंगार रस का स्थायी भाव रति/प्रेम होता है । श्रृंगार रस के 02 प्रकार होते हैं:- A) संयोग श्रृंगार , B) वियोग श्रृंगार । अब हम श्रृंगार रस के दोनो प्रकारों के बारे में बात करेंगे । A) संयोग श्रृंगार - अब हम बात करते है Sanyog Shringar Ras के बारे में तो  '' जहाँ नायक और नायिका के प्रेम की संयोग का वर्णन होता है, वहाँ संयोग श्रृंगार रस होता है । '' उदाहरण - 1) " राम के रूप निहारति जानकी, कंगन के नग की परछाहीं ।"  "यातै सबै सुधि भूलि गई, कर टेकि रही पल टारत नाहीं ।। " 2) "बतरस- लालच लाल की मुरली धरि लुकाय  । " "सौंह करै, भौंहनि हंसे दैन कहै नटि जाय ।। " B) वियोग श्रृंगार - अब हम बात करते है Viyog Shringar Ras के बारे में तो " जहाँ नायक और नायिका के प्रेम की वियोग का वर्णन होता है, वहाँ वियोग श्रृंगार रस होता है । " उदाहरण - 1)  " हे ! खग मृग, हे ! मधुकर श्रेणी ।" "तुम देखि का, मम सीता मृग नैनी ।।" 2) "हेरी मैं तो प्रेम दीवानी , दरद न जाने कोय ।"  "सूली ऊपर सेज पिया की , किस विधि मिलना होय ।।" अब श्रृंगार रस के अन्तर्गत :- 1) (a) विभाव (आलंबन) - नायक और नायिका , (b) विभाव (उद्दीपन) - आलंबन का सौंदर्य, प्रकृति, रमणीक वन, मनमोहक स्थान, भौरो का गुंजन, पंछियों का चहचहाना , 2) अनुभाव -  गले मिलना, स्पर्श, देखना, कटाक्ष,  आंसू , 3) स्थायी भाव - रति/प्रेम , 4) संचारी भाव - जड़ता, उन्माद, स्मृति, रुदन ।

2) हास्य रस :- अब हम बात करते है, हास्य रस के बारे में तो हास्य रस की परिभाषा :-  सहृदय के ह्रदय में स्थित हास नामक स्थायी भाव का जब विभाव,अनुभाव और संचारी भाव के साथ संयोग होता है तो वह हास्य रस कहलाता है अर्थात पढ़कर, देखकर, सुनकर या वेशभूषा और वाड़ी के कारण हास्य की अनुभूति होती है, उसे हास्य रस कहते हैं . इसका स्थाई भाव हसी होता है । उदाहरण - 1) "बुरे समय को देख कर, गंजे तू क्यों रोये !" "किसी भी हालत में तेरा, बाल ना बांका होये !! " 2) "मैं ऐसा महावीर हूं, जो पापड़ को तोड़ सकता हूँ।" "अगर गुस्सा आ जाए, तो कागज को मरोड़ सकता हूँ।। " "3) बंदर ने कहा बंदरिया से , चलो नहाएं गंगा । बच्चों को छोडो घर में होने दो हुड़दंगा ।" हास्य रस के अन्तर्गत :- 1) (a) विभाव (आलंबन) - वेशभूषा और चेष्टाए , (b) विभाव (उद्दीपन) - आश्चर्यजनक आकृति, वार्तालाप , 2) अनुभाव - मुस्कुराहट, नेत्रों का मिचमिचाना एवं जोरों की हंसी 3) स्थायी भाव - हसी , 4) संचारी भाव - हर्ष, चपलता ।

3) करुण रस :- अब हम बात करते है Karun Ras के बारे में तो आइए देखते है, करुण रस की परिभाषा - "प्रिय वस्तु के नष्ट होने पर अथवा अनिष्ट की प्राप्ति होने से, चित्त में जो विकलता आती है, उसे करुण रस कहा जाता हैं। इसका स्थायी भाव करुणा/शोक होता है ।" जैसे- 1) "अभी तो मुकुट बँधा था माथ , हुए ही थे कल हल्दी के हाथ ।"  "हाय रुक गया यह संसार , बना सिंदूर अंगार ।। "  2) "रावण के शव पर मन्दोदरी करुण क्रन्दन करने लगी।"  3) "गीत गाने दो मुझे, वेदना को रोकने को ।"  "चोट खाकर राह चलते, होश के भी होश छूटे । हाथ जो पाथेय थे ठग ।। " 👉  यह पंक्ति पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी ''निराला'' जी की है . जिसमें निराला जी जीवन में मिले अनगिनत दुख को सहते - सहते थक चुके हैं। अब वह अपने दुखों को अपने शोक को गीतों के माध्यम से दूर करना चाहते हैं। उनका कहना यह है कि उनके पास जो भी प्रिय था , वह सब समय रूपी ठगों ने उनसे छीन लिया है । जीवन के इस विषम परिस्थिति में निराला जी गीत गाकर अपने दुखों को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं । करुण रस के अन्तर्गत :- 1) (a) विभाव (आलंबन) - विनष्ट व्यक्ति या वस्तु , (b) विभाव (उद्दीपन) - आलंबन से संबंधित , 2) अनुभाव - रोना, प्रलाप, मूर्छा, दुखी होना, छाती पीटना , 3) स्थायी भाव - शोक , 4) संचारी भाव - ग्लानि, विषाद, जड़ता, दैन्य ।

4) वीर रस :- आइए अब हम बात करते है वीर रस के बारे में तो देखते है वीर रस की परिभाषा - " सहृदय के ह्रदय में स्थित उत्साह नामक स्थायी भाव का जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के साथ संयोग हो जाता है तो वीर रस की निष्पत्ति होती है । " जैसे- 1) " बुन्देलों हरबोलो के मुह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मरदानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ " 2) " मैं सत्य कहता हूँ सखे, सुकुमार मत जानो मुझे। यमराज से भी युद्ध में, प्रस्तुत सदा मानो मुझे ।" 3) "वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो! हाथ में ध्वजा रहे, बाल दल सजा रहे । ध्वज कभी झुके नहीं, दल कभी रुके नहीं । वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो !" वीर रस के अन्तर्गत :- 1) (a) विभाव (आलंबन) - अत्याचारी शत्रु , (b) विभाव (उद्दीपन) - शत्रु का अहंकार, जीतने की चाह , 2) अनुभाव - रोमांच, प्रहार करना , 3) स्थायी भाव - उत्साह , 4) संचारी भाव - आवेग, उग्रता, गर्व, उत्सुकता ।

5) रौद्र रस :- आइए अब हम बात करते है Raudra Ras के बारे में तो अब हम देखते है रौद्र रस की परिभाषा - " जहाँ क्रोध नामक स्थायी भाव का विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से संयोग होता है , वहां रौद्र रस की निष्पत्ति होती है । " जैसे - 1) श्रीकृष्ण के वचन सुन, अर्जुन क्रोध से जलने लगे । सब शोक अपना भूलकर , करतल युगल मलने लगे ।। 2) अतिरस बोले वचन कठोरबे , गि देखाउ मूढ़ नत आजू , उलटउँ महि जहँ जग तवराजू । 3) उस काल मरे क्रोध के तन काँपने उसका लगा । मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा ।। रौद्र रस के अन्तर्गत :- 1) (a) विभाव (आलंबन) - विपक्षी या शत्रु । (b) विभाव (उद्दीपन) - विपक्षी शत्रुओं के कार्य अथवा बातें । 2) अनुभाव - गुस्सा आना, शस्त्र चलाना, दांत पीसना । 3) स्थायी भाव - क्रोध । 4) संचारी भाव - आवेग, उग्रता, उद्वेग ।

6) भयानक रस :- आइए अब हम बात करते है, भयानक रस के बारे में तो देखते है भयानक रस की परिभाषा - " सहृदय के ह्रदय में स्थित भय  नामक स्थायी भाव का जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से संयोग होता है तो वहां भयानक  रस की निष्पत्ति होती है । " जैसे - 1) एक ओर अजगरहि लखि, एक ओर मृगराय। विकल बटोही बीच ही, परयों मूरछा खाय।।” विश्लेषण:- यहाँ पथिक के एक ओर अजगर है और दूसरी ओर शेर है, जिससे वह डर मारे मूर्छित हो गया है। यहाँ भय स्थायी भाव, पथिक आश्रय, अजगर और शेर आलम्बन, अजगर और शेर की भयावह आकृतियाँ और उनकी चेष्टाएँ उद्दीपन, यात्री को मूर्छा आना अनुभाव और आवेग, निर्वेद, दैन्य, शंका, व्याधि, त्रास, अपस्मार आदि संचारी भाव हैं, अत: यहाँ भयानक रस पाया गया है। भयानक रस के अन्तर्गत :- 1) (a) विभाव (आलंबन) - शेर, चोर, सांप, एकांत स्थान, भयंकर वस्तु का देखना , (b) विभाव (उद्दीपन) - डरावना पन अथवा भयंकर चेष्टाएं , 2) अनुभाव - कंपन होना, पसीना छूटना, मुंह सूखना, चिंता होना, मूर्च्छा आना, पलायन होना, रुदन , 3) स्थायी भाव - भय , 4) संचारी भाव - सम्मभ्रम, सम्मोह, दैन्य, त्रास .

7) वीभत्स रस :- आइए अब हम देखते है Vibhats Ras के बारे में तो वीभत्स रस की परिभाषा - " सहृदय के ह्रदय में स्थिति घृणा नामक स्थायी भाव का जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से संयोग होता है तो वहां वीभत्स रस की निष्पत्ति होती है ।" जैसे - 1) सिर पर बैठ्यो काग, आँख दोउ खात निकारत। खींचत जीभहिं स्यार , अतिहि आनन्द उर धारत।। गीध जाँघ को खोदि खोदि के मांस उपारत । स्वान आंगुरिन काटि-काटि कै खात विदारत।।” विश्लेषण :- कहा जा रहा है कि राजा हरिश्चन्द्र श्मशान घाट में यह सभी कृत्य देख रहे हैं और उनके मन में उत्पन्न घृणा स्थायी भाव, हरिश्चन्द्रं (आश्रय), मुदें, मांस और श्मशान का दृश्य आलम्बन, गीध, स्यार, कुत्तों आदि का मांस नोचना और खाना उद्दीपन है । राजा हरिश्चन्द्र जी का इनके बारे में सोचना अनुभाव है एवं यहां पर संचारी भाव मोह, ग्लानि आवेग, व्याधि हैं, अत: यहाँ वीभत्स रस पाया जाता है। 2) जे नर माछी खात है, मुड़ा पूंछ समेत | ते नर सरगै जात है, नाती पूत समेत ।। अब हम बात करते है वीभत्स, रस के अन्तर्गत :- 1) (a) विभाव (आलंबन) - दुर्गंध, मांस, रक्त, अस्थि, (b) विभाव (उद्दीपन) - मास को पशुओं का नोचना, कीड़े पड़ना , 2) अनुभाव - नाक टेढ़ा करना, मुंह बनाना  3) स्थायी भाव - घृणा अथवा जुगुप्सा , 4) संचारी भाव -  व्याधि, चिंता, वैवर्ण्य, जढ़ता .

8) अद्भुत रस :- अब हम बात करते है adbhut ras के बारे में तो आइए देखते है अद्भुत रस की परिभाषा - "सहृदय के ह्रदय में स्थित विस्मय या आश्चर्य नामक स्थायी भाव का जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के साथ संयोग होता है तो अद्भुत रस की निष्पत्ति होती है" अर्थात जहाँ अलौकिक और आश्चर्यजनक वस्तुओं या घटनाओं को देखकर जो आश्चर्य भाव मन में उत्पन्न होता  है, तब वहाँ अद्भुत रस पाया जाता है । जैसे- 1) हनुमान की पूँछ में लगन न पाई आग । लंका सारी जल गई, गए निशाचर भाग ।। 2) एक अचम्भा देखा रे भाई, ठाड़ा सिंह चरावै गाई। पहले पूत पीछे भई माई, चेला के गुरु लगै पाई॥ अद्भुत रस के अन्तर्गत :- 1) (a) विभाव (आलंबन) - आश्चर्य उत्पन्न करने वाला व्यक्ति , (b) विभाव (उद्दीपन) - अलौकिक वस्तुओं के दर्शन , 2) अनुभाव - आंखें फाड़ कर देखना, दांतो तले उंगली दबाना, आश्चर्य करना, रोमांच, गदगद , 3) स्थायी भाव - आश्चर्य , 4) संचारी भाव - उत्सुकता, भ्रांति, मोह, धृति .

9) शान्त रस :- अब हम बात करते है Shant Ras के बारे में तो आइए देखते है शान्त रस की परिभाषा - "सहृदय के ह्रदय में स्थित निर्वेद नामक स्थायी भाव का जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के साथ संयोग होता है तो वहां शांत  रस की निष्पत्ति होती है" अर्थात जब काव्य में संसार से विरक्ति  या वैराग्य का वर्णन होने लगे तो वहाँ शान्त रस पाया जाता है । जैसे - 1) चलती चाकी देख के दिया कबीरा रोय , दोउ पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय। विश्लेषण :- कबीर दास जी कहतें हैं मनुष्य को वीतराग होना चाहिए अर्थात सुख दुःख ,राग विराग ,जन्म, मृत्यु, प्रेम और घृणा सभी के प्रति समान भाव रखना चाहिए। जीवन चक्की के दो पाटों की तरह हैं जिसमें एक पाप और दूसरा पुण्य है । दोनों ही कर्म बंधन की वजह बनते हैं। 2) ऐसी मूढता या मन की । परिहरि रामभगति-सुरसरिता, आस करत ओसकन की।। शान्त रस के अन्तर्गत :- 1) (a) विभाव (आलंबन) - संसार क्षड़भंगुरता , (b) विभाव (उद्दीपन) - शास्त्रों का अनुशीलन , 2) अनुभाव - शांति का अनुभव, खुशी के आंसू , 3) स्थायी भाव - निर्वेद , 4) संचारी भाव - घृति, हर्ष, मति, निर्वेद .

10) वात्सल्य रस :- तो आइए अब हम बात करते है Vatsalya Ras के बारे में तो देखते है वात्सल्य रस की परिभाषा - "सहृदय के ह्रदय में स्थित वत्सल  नामक स्थायी भाव का जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के साथ संयोग होता है तो वहां वात्सल्य रस की निष्पत्ति होती है। कहने का तात्पर्य यह है कि जहां बाल्य प्रेम पाया जाता है, वहां वात्सल्य रस मिलता है ।" जैसे - 1) मैया मोरी  मैं नहिं माखन खायो । भोर भयो गैयन के पाछे,  मधुवन मोहिं पठायो ।। चार पहर बंसीबट भटक्यो , साँझ परे घर आयो ।। मैं बालक बहिंयन को छोटो, छींको किहि बिधि पायो ।। ग्वाल बाल सब बैर परे हैं, बरबस मुख लपटायो ॥ तू जननी मन की अति भोरी, इनके कहे पतिआयो ।।।।। विश्लेषण:- जब श्री कृष्ण जी को माखन खाने के लिए डांट पड़ रही होती है, तब नटखट कन्हैया अपनी मैया से कहते हैं कि:- मैया मैं तो पूरे दिन भर के चारों पहर में गायों को चरा रहा था । मुझे माखन खाने के लिए समय कहां से मिलेगा । तू तो मेरी भोली और प्यारी मैया है । तू तो जानती ही है कि यह सभी ग्वाले मुझे मार खिलाने के लिए तुमसे झूठ बोल रहे हैं । इन्होंने ही माखन खाया है और थोड़ा सा माखन को मेरे मुंह में चिपका दिया है ।2) धूलि भरे अति शोहित स्याम जू , तैसी बनी सर सुन्दर चोटी । काग के भाग बड़े सजनी , हरी हाथ से ले गयो माखन रोटी ॥ 3) माँ ओ , कहकर बुला रही थी , मिट्टी  खाकर आई थी ।  कुछ मुँह में कुछ लिए हाथ में, मुझे खिलाने आयी थी । मैनें पूछा - यह क्या लाई ? बोल उठी माँ काओ । हुआ प्रफुल्लित ह्रदय खुशी से , मैंने कहा - तुम्ही खाओ । वात्सल्य रस के अन्तर्गत :- 1) (a) विभाव (आलंबन) - पुत्र, शिशु एवं शिष्य , (b) विभाव (उद्दीपन) - बच्चो की हरकतें, तुतलना , 2) अनुभाव - स्नेह से बालक को गोद में लेना, आलिंगन करना, सिर पर हाथ फेरना,  पुचकारना, थपथपाना । 3) स्थायी भाव - वात्सल्य/स्नेह , 4) संचारी भाव - मोह, चिंता, शंका .

11) भक्ति रस :- अब हम बात करते है Bhakti Ras के बारे में तो आइए देखते है भक्ति रस की परिभाषा - " काव्य में ईश्वर की आराधना या प्रार्थना के लिए जिस रस का प्रयोग किया जाता है। उसे भक्ति रस कहते है । भक्ति रस के पाँच भेद हैं- शान्त, प्रीति, प्रेम, वत्सल और मधुर । " जैसे - 1) मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई । जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई ।। साधुन संग बैठि बैठि लोक-लाज खोई । अब तो बात फैल गई जाने सब कोई ।। भक्ति रस के अन्तर्गत :- 1) (a) विभाव (आलंबन) - ईश्वर , (b) विभाव (उद्दीपन) - ईश्वर के कार्यकलाप, सत्संग, लीला, कथा, पूजन , 2) अनुभाव - आंखों से आंसू का गिरना, गदगद होना, भक्ति करना, कभी खुशी से नाचना, ताली बजाना, भजन करना, पूजा करना । 3) स्थायी भाव - देव विषयक , 4) संचारी भाव - मति, निवेद ।

Ras Kise Kahate Hai

आइए अब हम बात करते है कि Ras Kise Kahate Hai तो रस भारतीय साहित्य, नाटक, और कला का एक महत्वपूर्ण तत्व है जो किसी काव्य, नाटक, संगीत, या चित्रकला के माध्यम से दर्शक या पाठक को एक विशिष्ट भावनात्मक अनुभव प्रदान करता है। 'रस' का शाब्दिक अर्थ आनंद होता है, और यह उस भावनात्मक स्थिति को दर्शाता है जो किसी कला रूप से प्राप्त होती है। आचार्य भरतमुनि ने अपने ग्रंथ 'नाट्यशास्त्र' में रस की गहराई से विवेचना की है। उनके अनुसार, रस की उत्पत्ति विभाव, अनुभाव, और व्यभिचारी के संयोग से होती है। विभाव उन तत्वों को संदर्भित करता है जो भाव उत्पन्न करते हैं, अनुभाव वे क्रियाएँ होती हैं जो भावों को व्यक्त करती हैं, और व्यभिचारी उन अस्थायी भावों को दर्शाते हैं जो स्थायी भाव को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार, रस कला के माध्यम से भावनात्मक अनुभव को प्रकट करने का एक माध्यम है। रस के माध्यम से लेखन और वाक शैली में सुंदरता आता है ।

आशा करते है की रस के बारे में आपको समझ आ रहा होगा , रस की समझ हमें विभिन्न भावनाओं की गहराई को समझने में मदद करती है। जैसे कि हास्य रस हमें हंसी और आनंद का अनुभव कराता है, वहीं रौद्र रस क्रोध और गुस्से को व्यक्त करता है। रस के चार प्रमुख अंग होते हैं: विभाव, अनुभाव, स्थायी भाव, और संचारी भाव। विभाव उस कारण को दर्शाता है जो भाव उत्पन्न करता है; अनुभाव वह प्रतिक्रिया है जो स्थायी भाव को प्रकट करती है; स्थायी भाव वह मुख्य भाव होता है जो स्थायी रूप से रहता है; और संचारी भाव उन अस्थायी भावों को दर्शाते हैं जो स्थायी भाव को प्रभावित करते हैं। रस के ग्यारह प्रकार हैं—श्रृंगार, हास्य, करुण, वीर, रौद्र, भयानक, वीभत्स, अद्भुत, शान्त, वात्सल्य, और भक्ति—जो विभिन्न भावनात्मक अनुभवों को व्यक्त करते हैं और कला के माध्यम से आनंद की अनुभूति को बढ़ाते हैं। इस प्रकार रस के माध्यम से भाषा में रस का समावेश घोल होता है ।

रस से शब्दो की सुंदरता बढ़ जाती है, इन रसों की विस्तृत चर्चा और समझ हमें कला और साहित्य के प्रति एक गहरी संवेदनशीलता प्रदान करती है। उदाहरण के लिए, श्रृंगार रस प्रेम और सौंदर्य की भावनाओं को व्यक्त करता है, जबकि वीर रस उत्साह और साहस को उजागर करता है। इसी तरह, करुण रस शोक और दया को प्रकट करता है, और अद्भुत रस आश्चर्य और विस्मय का अनुभव कराता है। यदि आपने रस के बारे में सबकुछ जान लिया हो तो हिंदी व्याकरण की दृष्टि से रस के बाद आपको छंद ( Chhand ) का जानकारी लेना चाहिए । हर रस की अपनी विशेषताएँ और अनुभूति होती हैं जो कला और साहित्य के विभिन्न रूपों के माध्यम से दर्शकों और पाठकों को विभिन्न भावनात्मक अनुभवों की ओर ले जाती हैं। इस प्रकार, रस भारतीय कला और साहित्य में भावनाओं की विविधता और गहराई को व्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण तत्व है। उम्मदीद करते है की रस के बारे में आपको संपूर्ण जानकारी प्राप्त हो गई होगी ।

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